Saturday, March 15, 2014

क्या है भद्रा और होलिका दहन से इसका सम्बन्ध


फाल्गुन मास में होली और होली पर होलिका दहन याद आते ही विद्वज्जनों में होलिका दहन के समय के बारे में विचार-विमर्श प्रारंभ हो जाता है और इसी के साथ भद्रा का नाम आता है | तो इस प्रकरण में भद्रा पर विचार और सामान्य जानकारी प्रस्तुत है –
तो पंचांग में जैसा कि नाम से विदित है पांच अंग हैं – तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण | इनमें से तिथि, वार और नक्षत्र का उपयोग जन्मपत्रिका, मुहूर्त्त इत्यादि में होता है परन्तु योग और करण का उपयोग छोटी समय-सीमा होने के कारण अब लुप्तप्रायः है | तिथि 15/ 16, वार 7 और नक्षत्र 27/ 28, इसी के साथ योग 27 और करण 11 हैं |
यहाँ हम ध्यान केन्द्रित करते हैं करण पर जो कि 11 हैं | वास्तव में किसी तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं अतएव एक तिथि में दो करण होते हैं |
बवबालवकौलवतैतिलगरवाणिज्यविष्टयः सप्त |
शकुनि चतुष्पदनागकिन्स्तुघ्नानि ध्रुवाणि करणानि ||
1-बव, 2-बालव, 3-कौलव, 4-तैतिल, 5-गर, 6-वणिज, 7-विष्टि, 8-शकुनि, 9-चतुष्पद, 10-नाग, 11-किन्स्तुघ्न
तो ये हैं 11 करण, इनमें से विष्टि करण को ही भद्रा कहते हैं, जो कि पौराणिक कथानुसार सूर्य और छाया की पुत्री है |
इनमें से कुछ करण तिथि के लिए निश्चित हैं :
चतुर्दशी के उत्तरार्द्ध में – शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्द्ध में – चतुष्पद और उत्तरार्द्ध में नाग, प्रथमा के पूर्वार्द्ध में किन्स्तुघ्न | और शेष बव -> बालव -> कौलव -> तैतिल -> गर -> वणिज -> विष्टि ये सभी क्रमशः तिथियों में चलते रहते हैं | इसीलिए पहले बताये चारों को स्थिर और बाद में बताये गए 7 को चर करण कहते हैं |
पुनः सभी करणों में से हम विष्टि यानि कि भद्रा पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, ये कब आती है ?
शुक्ले पूर्वार्धेष्टमीपञ्चदश्योर्भद्रैकादश्यां स्याच्चतुर्थ्यांपरार्धे |
कृष्णेन्त्यार्धे स्यातृतीयादशम्योः पूर्वे भागे सप्तमीशंभुतिथ्योः ||
( - मुहूर्त्त चिन्तामणि)
अर्थात शुक्लपक्ष की अष्टमी और पूर्णिमा के पूर्वार्द्ध (प्रथम 30 घड़ी) में भद्रा रहती है, और शुक्लपक्ष की एकादशी और चतुर्थी को उत्तरार्द्ध (अंत की 30 घड़ी) में भद्रा होती है | कृष्णपक्ष में तृतीया और दशमी को उत्तरार्द्ध में भद्रा और सप्तमी और चतुर्दशी के पूर्वार्द्ध में भद्रा रहती है |
तो इस प्रकार पूर्णिमा की प्रथम 30 घड़ी तक (तिथ्यार्ध) तक भद्रा तो रहती ही है | और हम जानते हैं कि फाल्गुन की पूर्णिमा को ही होलिका दहन होता है तो उस दिन भद्रा तो होती ही है |
यहीं पर भद्रा की और जानकारी ले लें तो अच्छा रहेगा, भद्रा को सर्पिणी मानते हुए उसके मुख और पूँछ का ज्ञान नीचे के श्लोक से मिलता है –
पंचद्वयद्रकृताष्टरामरसभूयामादिघट्यः शराविष्टेरासस्य मसद्गजेन्दुरसरामाध्रश्विबाणाब्धिषु ||
यामेष्वंत्यघटीत्रयं शुभकरं पुच्छं तथा वासरे विष्टिस्तिथ्यपरार्धजा शुभकरी रात्रौतु पूर्वार्धजा ||
( - मुहूर्त्त चिन्तामणि)
नीचे की सारणी में इस श्लोक के अनुसार भद्रा मुख और पूँछ का ज्ञान है –
भद्रा मुख (अशुभ)
तिथि
प्रहर
घड़ी
शुक्ल चतुर्थी
5
प्रारंभिक 5
शुक्ल अष्टमी
2
प्रारंभिक 5
शुक्ल एकादशी
7
प्रारंभिक 5
पूर्णिमा
4
प्रारंभिक 5
कृष्ण तृतीया
8
प्रारंभिक 5
कृष्ण 5सप्तमी
3
प्रारंभिक 5
कृष्ण दशमी
6
प्रारंभिक 5
कृष्ण चतुर्दशी
1
प्रारंभिक 5
भद्रा पुच्छ (अपेक्षाकृत शुभ)
तिथि
प्रहर
घड़ी
शुक्ल चतुर्थी
8
अंतिम 3
शुक्ल अष्टमी
1
अंतिम 3
शुक्ल एकादशी
6
अंतिम 3
पूर्णिमा
3
अंतिम 3
कृष्ण तृतीया
7
अंतिम 3
कृष्ण सप्तमी
2
अंतिम 3
कृष्ण दशमी
5
अंतिम 3
कृष्ण चतुर्दशी
4
अंतिम 3











भद्रा के वास का भी उल्लेख करना उचित ही होगा –
कुम्भकर्कद्वये मर्त्ये स्वर्गेsब्जेsजात्रयेsलिगे |
स्त्री धनूर्जूकनक्रेsधो भद्रा यत्रैव तत्फलम् ||
( - मुहूर्त्त चिन्तामणि)
अर्थात कुम्भ, कर और सिंह राशि के चन्द्रमा होने से भद्रा मृत्युलोक में, मेष, वृष और मिथुन राशि में चन्द्रमा होने से स्वर्गलोक में और कन्या, धनु, तुला और मकर राशि में चंद्रमा होने पर पाताल में भद्रा का वास होता है | जहां भद्रा रहती है वहीँ वह फल देती है |
अब भद्रा के शुभाशुभ का ज्ञान लेते हैं –
न कुर्यान्मंगलम् विष्ट्यां जीवितार्थी कदाचन |
कुर्वन्न्ज्ञस्तदा क्षिप्रं तत्सर्वं नाशतां व्रजेत् ||
( - वशिष्ठसंहिता )
के अनुसार मंगल कार्य विष्टि करण में नहीं करने चाहिए, नहीं तो नाश होता है |
इसके और भी अन्य कई प्रमाण हैं कि भद्रा में शुभ-कार्य न करें | परन्तु होलिका दहन के सम्बन्ध में विशेषकर ऐसा लिखा है कि –
भद्रायां दीपिता होली राष्ट्रभङ्गं करोति वै |
नगरस्य च नैवेष्टा तस्मात्तां परिवर्जयेत् ||
( - निर्णयामृत)
अर्थात भद्रा में जलाई गयी होली देश का भंग करती है और नगर और निवासियों के लिए अनिष्टकारी है अतः इसे परिवर्जित करें |
एक और उदाहरण –
भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा |
श्रावणी नृपतिं हन्ति ग्रामं दहति फाल्गुनी ||
( - मदनरत्न)
अर्थात भद्रा में दो कार्य न करें श्रावणी (रक्षाबंधन) और फाल्गुनी (होली), यदि भद्रा में रक्ष्बंधन होता है तो राजा मर जाता है (यहाँ मान कर चलें कि नागरिकों को रक्षा का वचन राजा ही देता था, कालान्तर में भाई, गुरु के रक्षाबंधन से उनकी हानि की ओर भी इंगित है ) और होली जलाई जाती है तो ग्राम का जल जाता है |
यहाँ तक हमने जाना की भद्रा क्या है, कब आती है और कहाँ वास है, इसके होने पर क्या नहीं करना चाहिए |
अब होलिका दहन के बारे में जानें –
प्रदोषव्यापिनी ग्राह्या पौर्णिमा फाल्गुनी सदा |
तस्यां भद्रामुखं त्यक्त्वा पूज्या होला निशामुखे ||
( - ज्योतिर्निबन्धः)
अर्थात फाल्गुन की पूर्णिमा प्रदोष काल के समय की लेनी चाहिए और उसमें भद्रा मुख को त्याग कर रात्रिमुख में होलिका-पूजा (दहन) करना चाहिए |
यहाँ हमने होलिका दहन और भद्रा में सामान्य सम्बन्ध जाना और सामान्य बातें जानीं | परन्तु ध्यान रखें कि कई प्रकार की अति विशिष्ट और दुरूह परिस्थितियाँ होलिका दहन के काल और पंचांग विचार में आती हैं, हल और प्रमाण उनके भी हैं और पथ-प्रदर्शक वहां भी हैं |
होली की आप सभी को बधाई ! होलिका दहन आपके लिए मंगल ले कर आये और आपके जीवन नित नए रंग भरे !
अस्माभिर्भयसंत्रस्तेः कृता त्वम् होलिके ! यतः | अतस्त्वाम् पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव ||
-  --  स्व. डॉ. पं. अशोकशर्मात्मजअलंकारशर्मा, हाथरस