सनातन संस्कृति
में पञ्चाङ्ग में तिथि के अनुसार ही बहुधा पूजन-व्रत-कर्म
का उल्लेख होता है । जिस प्रकार
प्रकृति की प्रत्येक वस्तु को तीन गुणों में विभाजित किया गया है, उसी प्रकार पञ्चाङ्ग के अवयवों को भी देवताओं से सम्बन्धित किया
गया है । पञ्चाङ्ग के पांच अवयव हैं
– तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण (तिथेश्च श्रियमाप्नोति वारादायुष्य वर्धनम्, नक्षत्राद्धरते
पापं योगत्रोग निवारणम् । करणात् कार्यसिद्धिस्यात् एवं पंचांगमुत्तमम् ) ।
अब मास में
दो पक्ष हैं – कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष और प्रत्येक पक्ष में 14 तिथियाँ एक जैसी
हैं प्रथमा से लेकर चतुर्दशी तक । कृष्णपक्ष की पंद्रहवीं तिथि अमावस्या और
शुक्लपक्ष की पंद्रहवीं तिथि पूर्णिमा है । जैसे ऊपर बताया प्रत्येक तिथि को एक
देवता द्वारा शासित बताया गया जो उस तिथि के तिथीश/ तिथि स्वामी कहलाते हैं ।
तिथीश का पूजन उनकी तिथि में करने से विशेष फल-प्राप्ति बतायी गई है ।
ये तिथीश
निम्न प्रकार से हैं –
तिथीशा वह्निकौ गौरी गणेशोहिर्गुहो रविः ।
शिवो दुर्गान्तको विश्वे हरिः कामः शिवः शशी ॥
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मुहूर्त चिंतामणि, शुभाशुभ प्रकरण, ३
प्रथमा के अग्नि, द्वितीया के ब्रह्मा, तृतीया के पार्वती, चतुर्थी
के गणेश, पञ्चमी के सर्प, षष्ठी के कार्तिकेय, सप्तमी के सूर्य, अष्टमी कि शिव,
नवमी के दुर्गा, दशमी के यम, एकादशी के विश्वेदेव, द्वादशी के हरि, त्रयोदशी के
कामदेव, चतुर्दशी के शिव, अमावस्या और पूर्णिमा के चन्द्रमा ये क्रम से प्रथमा से
तिथीश हैं ।
तो अब आप समझिये कि प्रत्येक
महीने की ये तिथियाँ उनके तिथीशों को समर्पित हैं, इनमें उनका पूजन और उन से
सम्बंधित कार्य-कलापादि करने योग्य हैं । इसीलिए गणेश चतुर्थी, नाग-पञ्चमी, स्कन्द-षष्ठी,
सूर्य या रथ-सप्तमी, शिव-चौदस, दुर्गा-नवमी, गणगौर/हरियाली/मधुस्रवा-तीज प्रसिद्ध
हैं । हाँ इनमें किन्हीं व्रत-पूजा में शुक्लपक्ष और किन्हीं में कृष्णपक्ष को वरीयता
दी जाती है जैसे गणगौर गौरी की पूजा है परिवार-पति के लिए अतः शुक्लपक्ष प्रधान
है, शिवचौदस शिव की पूजा है अतः कृष्णपक्ष वरीय है । आगे पुनः नक्षत्र, योग, करण के
जोड़ने से इन कामों को सूक्ष्मतया विचारा जाता है परन्तु आधारभूत और स्थूल रूप से
उपरोक्त कल्पना है ।
किसी भी पञ्चाङ्ग में मास-शिवरात्रि इत्यादि दी जाती हैं
परन्तु वर्ष में एक या दो बार इन को उत्सव की तरह मनाया जाता है यथा महाशिवरात्रि,
महानवमी, गणगौर इत्यादि और विशेष रूप से इन तिथीशों की पूजा-अर्चना-व्रत किये जाते
हैं ।