Wednesday, August 8, 2018

पञ्चाङ्ग और तिथीश



सनातन संस्कृति में पञ्चाङ्ग में तिथि के अनुसार ही बहुधा पूजन-व्रत-कर्म का उल्लेख होता है जिस प्रकार प्रकृति की प्रत्येक वस्तु को तीन गुणों में विभाजित किया गया है, उसी प्रकार पञ्चाङ्ग के अवयवों को भी देवताओं से सम्बन्धित किया गया है । पञ्चाङ्ग के पांच अवयव हैं – तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण (तिथेश्च श्रियमाप्नोति वारादायुष्य वर्धनम्, नक्षत्राद्धरते पापं योगत्रोग निवारणम् । करणात् कार्यसिद्धिस्यात् एवं पंचांगमुत्तमम् ) ।

अब मास में दो पक्ष हैं – कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष और प्रत्येक पक्ष में 14 तिथियाँ एक जैसी हैं प्रथमा से लेकर चतुर्दशी तक । कृष्णपक्ष की पंद्रहवीं तिथि अमावस्या और शुक्लपक्ष की पंद्रहवीं तिथि पूर्णिमा है । जैसे ऊपर बताया प्रत्येक तिथि को एक देवता द्वारा शासित बताया गया जो उस तिथि के तिथीश/ तिथि स्वामी कहलाते हैं । तिथीश का पूजन उनकी तिथि में करने से विशेष फल-प्राप्ति बतायी गई है ।

ये तिथीश निम्न प्रकार से हैं –
तिथीशा वह्निकौ गौरी गणेशोहिर्गुहो रविः ।
शिवो दुर्गान्तको विश्वे हरिः कामः शिवः शशी ॥
- मुहूर्त चिंतामणि, शुभाशुभ प्रकरण, ३


प्रथमा के अग्नि, द्वितीया के ब्रह्मा, तृतीया के पार्वती, चतुर्थी के गणेश, पञ्चमी के सर्प, षष्ठी के कार्तिकेय, सप्तमी के सूर्य, अष्टमी कि शिव, नवमी के दुर्गा, दशमी के यम, एकादशी के विश्वेदेव, द्वादशी के हरि, त्रयोदशी के कामदेव, चतुर्दशी के शिव, अमावस्या और पूर्णिमा के चन्द्रमा ये क्रम से प्रथमा से तिथीश हैं ।

तो अब आप समझिये कि प्रत्येक महीने की ये तिथियाँ उनके तिथीशों को समर्पित हैं, इनमें उनका पूजन और उन से सम्बंधित कार्य-कलापादि करने योग्य हैं । इसीलिए गणेश चतुर्थी, नाग-पञ्चमी, स्कन्द-षष्ठी, सूर्य या रथ-सप्तमी, शिव-चौदस, दुर्गा-नवमी, गणगौर/हरियाली/मधुस्रवा-तीज प्रसिद्ध हैं । हाँ इनमें किन्हीं व्रत-पूजा में शुक्लपक्ष और किन्हीं में कृष्णपक्ष को वरीयता दी जाती है जैसे गणगौर गौरी की पूजा है परिवार-पति के लिए अतः शुक्लपक्ष प्रधान है, शिवचौदस शिव की पूजा है अतः कृष्णपक्ष वरीय है । आगे पुनः नक्षत्र, योग, करण के जोड़ने से इन कामों को सूक्ष्मतया विचारा जाता है परन्तु आधारभूत और स्थूल रूप से उपरोक्त कल्पना है ।

किसी भी पञ्चाङ्ग में मास-शिवरात्रि इत्यादि दी जाती हैं परन्तु वर्ष में एक या दो बार इन को उत्सव की तरह मनाया जाता है यथा महाशिवरात्रि, महानवमी, गणगौर इत्यादि और विशेष रूप से इन तिथीशों की पूजा-अर्चना-व्रत किये जाते हैं ।

Wednesday, March 7, 2018

ऋतुराज आ गए हैं......

......... तो ऋतुराज वसंत आ गए हैं | होली का त्यौहार अभी कल ही निकला है - हंसने-हंसाने, रंगों और इत्रों का प्रयोग अपने त्यौहार में तो हमने किया ही, प्रकृति तो इस तैयारी में पहले से लगी थी और उसने वातावरण बनाने में कोई कसर न रख छोड़ी थी |

देखिये अभी चार वृक्ष और उनके पुष्प चुने जो होलिका की लाल-पीली-नीली-श्वेत अग्नि से वर्णों में प्रतिद्वंदिता कर रहे हैं |


इनको देखने का आनंद अपनी आँखों से ही है वृक्ष पर, फोटो में वह वास्तविक आनंद नहीं मिलता परन्तु इस फोटो ब्लॉग में लिख कर रख दिया कि याद रहे | सभी फोटो ग्रेटर नॉएडा में लिए गए हैं जहां सेमल और मन्दार बहुतायत में है, पलाश की छठा नॉएडा-ग्रेटर नॉएडा एक्सप्रेसवे पर है और कचनार यत्र-तत्र मिल जाता है |

पारिभद्र/ मन्दार (Indian Corel Tree, Tiger Claw Tree) - Erythrina variegata

मंदार पुष्प-1


मंदार पुष्प-2


मंदार पुष्प-3
कल्पद्रुम की परिभाषा के अनुसार "मन्द्यते स्तूयते प्रशस्यते सः मन्दारः", अमरकोष कहता है - "पञ्चैते देवतरवो मन्दारः पारिजातकः" यह इन्द्र के नन्दन-कानन के पांच वृक्षों में से एक है (स्वर्गीय पञ्चवृक्षान्तर्गत-देवतरुविशेषः)


मन्दार वृक्ष से सुसज्जित एक मार्ग
भवनों की ऊंचाई से होड़ करते मन्दार पुष्प
अभी हमारे क्षेत्र में यद्यपि मन्दार वृक्ष छोटी उम्र के हैं तब भी इस समय इनकी शोभा पथ के दोनों ओर देखते बनती है | पत्ते पेड़ों पर बहुत ज्यादा नहीं हैं और जिस जगह फूल हैं वहां तो प्रायः पत्ते हैं ही नहीं |

काञ्चनार/ कचनार (Mountain-ebony, Camel's foot Tree) - Bauhinia variegata

नील-लोहित काञ्चनार
श्वेत काञ्चनार-1


श्वेत काञ्चनार-2
श्वेत काञ्चनार-3
यह बिहार राज्य का राज्य-पुष्प है और कई रंगों के फूल देता है | कल्पद्रुम के अनुसार "काञ्चनं तद्वर्णं ऋच्छति पुष्यैः" - सोने जैसे रंग के पुष्प वाला | वाल्मीकि रामायण में इसी को इंगित करते हुए "कोविदार" बोला गया है | सुन्दर काया की स्त्री को कचनार की कली की उपमा दी जाती है | वैसे पाकशास्त्र में भी "कोविदारकलिकांतिकोमलातक्रसिद्धतिलतैलपाचिता" इसकी कली को कोमल बताया है


बैंगनी और सफ़ेद पुष्प के चित्र ऊपर देखिये | इसे Camel's Foot Tree इसलिए बोलते हैं क्योंकि इसके पत्ते देखने में उसी प्रकार के होते हैं जैसे ऊँट के पैर |














"कच्ची कली कचनार की तोड़ी नहीं जाती......" - "वक्त हमारा है" फिल्म का गाना है | "कच्ची कली कचनार की...." - "हंगामा" फिल्म में RD बर्मन का गाना है |


शाल्मली/ सेमल/ कंटकद्रुम (Indian Kapok, Red Cotton Tree) - Bombax ceiba

सुना ही होगा कबीर का प्रसिद्ध दोहा - ऐसा यहु संसार हैजैसा सैंबल फूल । दिन दस के व्यौहार मेंझूठै रंगि न भूल ।।
तो यह वही सेमल है |
शाल्मली पुष्प-1
शाल्मली पुष्प-2

शाल्मली वृक्ष

कल्पद्रुम बताता है - कण्टकप्रधानो द्रुमः कण्टकेना-चितोद्रुमो वा (जिसका तना काँटों से भरा हो) |
इसी के काँटों को जिस नरक में चुभा कर यातना दी जाती है उस नरक का नाम शाल्मली नरक है | (ज्वलन्तीमायसीं घोरां बहुकण्टकसंवृताम्। शाल्मलीं तेऽवगूहंति परदाररता हि ये।। - स्कन्द पुराण ५.३.१५५.३)
इसी के नाम से एक सप्तद्वीपों में से एक शाल्मलि द्वीप है |

मार्गों पर बिखरा शाल्मली पुष्प

शाल्मली वृक्ष


फूलों से लदा शाल्मली वृक्ष

पलाश/ किन्शुक/ ढाक/ टेसू (Flame of the forest) - Butea monosperma

"फिर वही ढाक के तीन पात", वाला ढाक यही है और होली का टेसू भी यही है | इसका प्रयोग आपने बचपन में दोने और पत्तल के रूप में देखा होगा | होली के आगमन को टेसू का फूलना ही इंगित करता है | इसका संस्कृत नाम "किंशुक" किं + शुक से बन है अर्थात् क्या तोता है ? इसकी कली और फूल को देख कर लगता है जैसे तोते कि चोंच हो, इसीलिये ये नाम दिया गया है |

झारखंड का राज्यीय फूल है |

पलाश का फूल

पलाश फूलों का गुच्छ

पलाश "किंशुक" नाम को सार्थक करता

वृक्ष पर पलाश का सौंदर्य

पलाश पुष्प समूह-1

पलाश पुष्प समूह-2

पलाश से लदा वृक्ष
संस्कृत में पलाश नाम "पलं गतिं कम्पनमित्यर्थः" के अर्थ में आता है और इसे "पलाशो ब्रह्मरूपधृक्" अर्थात ब्रह्मा का स्वरुप माना जाता है | "पलाशः किंशुकः पर्णो याज्ञिको रक्तपुष्पकः .क्षारश्रेष्ठो वातपोथो ब्रह्मवृक्षः समिद्वरः" |

किंशुक की परिभाषा - "किंचित् शुक इव शुकतुण्डसदृशपुष्पत्वात्तथात्वम्" | एक बहुप्रचिलित सुभाषित भी है "विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः" - विद्याहीन लोग अच्छे नहीं लगते जैसे किंशुक (देखने में तो सुन्दर है परन्तु सुगंध नहीं है) |

बाकी यहाँ मार्क्ड हैं -
Flora and Fauna of Greater Noida