......... तो ऋतुराज वसंत आ गए हैं |
होली का त्यौहार अभी कल ही निकला है - हंसने-हंसाने, रंगों और इत्रों का प्रयोग अपने त्यौहार में तो हमने किया ही, प्रकृति तो इस तैयारी में पहले से लगी थी और उसने वातावरण बनाने में कोई
कसर न रख छोड़ी थी |
देखिये
अभी चार वृक्ष और उनके पुष्प चुने जो होलिका की लाल-पीली-नीली-श्वेत अग्नि से
वर्णों में प्रतिद्वंदिता कर रहे हैं |
इनको देखने का आनंद अपनी आँखों से ही है वृक्ष पर, फोटो में वह वास्तविक आनंद नहीं मिलता परन्तु इस फोटो ब्लॉग में लिख कर रख
दिया कि याद रहे | सभी फोटो ग्रेटर नॉएडा में लिए गए हैं
जहां सेमल और मन्दार बहुतायत में है, पलाश की छठा
नॉएडा-ग्रेटर नॉएडा एक्सप्रेसवे पर है और कचनार यत्र-तत्र मिल जाता है |
पारिभद्र/ मन्दार (Indian Corel Tree, Tiger Claw Tree) - Erythrina variegata
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मंदार पुष्प-1 |
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मंदार पुष्प-2 |
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मंदार पुष्प-3 |
कल्पद्रुम
की परिभाषा के अनुसार "मन्द्यते स्तूयते प्रशस्यते सः मन्दारः", अमरकोष कहता है - "पञ्चैते
देवतरवो मन्दारः पारिजातकः" यह इन्द्र के नन्दन-कानन के पांच वृक्षों में से
एक है (स्वर्गीय पञ्चवृक्षान्तर्गत-देवतरुविशेषः)
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मन्दार वृक्ष से सुसज्जित एक मार्ग |
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भवनों की ऊंचाई से होड़ करते मन्दार पुष्प |
अभी हमारे क्षेत्र में
यद्यपि मन्दार वृक्ष छोटी उम्र के हैं तब भी इस समय इनकी शोभा पथ के दोनों ओर
देखते बनती है | पत्ते
पेड़ों पर बहुत ज्यादा नहीं हैं और जिस जगह फूल हैं वहां तो प्रायः पत्ते हैं ही
नहीं |
काञ्चनार/ कचनार (Mountain-ebony, Camel's foot Tree) - Bauhinia variegata
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नील-लोहित काञ्चनार |
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श्वेत काञ्चनार-1 |
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श्वेत काञ्चनार-2 |
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श्वेत काञ्चनार-3 |
यह बिहार राज्य का
राज्य-पुष्प है और कई रंगों के फूल देता है | कल्पद्रुम के अनुसार "काञ्चनं तद्वर्णं ऋच्छति
पुष्यैः" - सोने जैसे रंग के पुष्प वाला | वाल्मीकि
रामायण में इसी को इंगित करते हुए "कोविदार" बोला गया है | सुन्दर काया की स्त्री को कचनार की कली की उपमा दी जाती है | वैसे पाकशास्त्र में भी "कोविदारकलिकांतिकोमलातक्रसिद्धतिलतैलपाचिता"
इसकी कली को कोमल बताया है |
बैंगनी और सफ़ेद पुष्प के चित्र ऊपर देखिये | इसे
Camel's Foot Tree इसलिए बोलते हैं क्योंकि इसके पत्ते देखने
में उसी प्रकार के होते हैं जैसे ऊँट के पैर |
"कच्ची कली कचनार की तोड़ी नहीं
जाती......" - "वक्त हमारा है" फिल्म का गाना है | "कच्ची कली कचनार की...." - "हंगामा" फिल्म में RD बर्मन का गाना है |
शाल्मली/ सेमल/ कंटकद्रुम (Indian Kapok, Red Cotton Tree) - Bombax ceiba
सुना ही होगा कबीर का प्रसिद्ध दोहा - ऐसा यहु संसार है, जैसा सैंबल फूल । दिन दस के व्यौहार में, झूठै रंगि न भूल ।।
तो यह वही सेमल है |
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शाल्मली पुष्प-1 |
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शाल्मली पुष्प-2 |
शाल्मली वृक्ष
कल्पद्रुम बताता है -
कण्टकप्रधानो द्रुमः कण्टकेना-चितोद्रुमो वा (जिसका तना काँटों से भरा हो) |
इसी के काँटों को जिस नरक
में चुभा कर यातना दी जाती है उस नरक का नाम शाल्मली नरक है | (ज्वलन्तीमायसीं घोरां
बहुकण्टकसंवृताम्। शाल्मलीं तेऽवगूहंति परदाररता हि ये।। - स्कन्द पुराण
५.३.१५५.३)
इसी के नाम से एक
सप्तद्वीपों में से एक शाल्मलि द्वीप है |
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मार्गों पर बिखरा शाल्मली पुष्प |
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शाल्मली वृक्ष |
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फूलों से लदा शाल्मली वृक्ष |
पलाश/ किन्शुक/ ढाक/ टेसू (Flame of the forest) - Butea monosperma
"फिर वही ढाक के तीन पात",
वाला ढाक यही है और होली का टेसू भी यही है | इसका
प्रयोग आपने बचपन में दोने और पत्तल के रूप में देखा होगा | होली
के आगमन को टेसू का फूलना ही इंगित करता है | इसका संस्कृत
नाम "किंशुक" किं + शुक से बन है अर्थात्
क्या तोता है ? इसकी कली और फूल को देख कर लगता है जैसे तोते
कि चोंच हो, इसीलिये ये नाम दिया गया है |
झारखंड का राज्यीय फूल है
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पलाश का फूल |
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पलाश फूलों का गुच्छ |
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पलाश "किंशुक" नाम को सार्थक करता |
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वृक्ष पर पलाश का सौंदर्य |
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पलाश पुष्प समूह-1 |
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पलाश पुष्प समूह-2 |
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पलाश से लदा वृक्ष |
संस्कृत में पलाश नाम
"पलं गतिं कम्पनमित्यर्थः" के अर्थ में आता है और इसे "पलाशो
ब्रह्मरूपधृक्" अर्थात ब्रह्मा का स्वरुप माना जाता है | "पलाशः किंशुकः पर्णो
याज्ञिको रक्तपुष्पकः .क्षारश्रेष्ठो वातपोथो ब्रह्मवृक्षः समिद्वरः" |
किंशुक की परिभाषा - "किंचित् शुक इव
शुकतुण्डसदृशपुष्पत्वात्तथात्वम्" | एक बहुप्रचिलित
सुभाषित भी है "विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः" -
विद्याहीन लोग अच्छे नहीं लगते जैसे किंशुक (देखने में तो सुन्दर है परन्तु सुगंध
नहीं है) |
बाकी यहाँ मार्क्ड हैं -
Flora and Fauna of Greater Noida